18 अप्रैल 2024

तान्त्रिक बीज मन्त्र युक्त हनुमान साधना

   तान्त्रिक बीज मन्त्र युक्त हनुमान साधना 




॥ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं रुद्ररूपाय महासिद्धाय ह्रीं ह्रीं ह्रीं नमः 

यह तान्त्रिक बीज मन्त्र युक्त मन्त्र है.  
जाप प्रारंभ करने से पहले अपनी मनोकामना प्रभु के सामने व्यक्त करें. 
ब्रह्मचर्य का पालन करें. 
एक समय भोजन करें. बीच में चाहें तो फ़लाहार कर सकते हैं.
दक्षिण दिशा में मुख करके वज्रासन या वीरासन में बैठें. 
रात्रि ९ से ३ के बीच जाप करें. 
लाल वस्त्र पहनकर लाल आसन पर बैठ कर  जाप करें. 
गुड तथा चने का भोग लगायें. 
यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.
११००० जाप करें ११०० मन्त्रों से हवन करें. 
साधना पूर्ण होने पर एक छोटे गरीब बालक को उसकी पसंद का वस्त्र लेकर दें.

17 अप्रैल 2024

श्री हनुमान सरल हवन विधि

  

श्री हनुमान सरल हवन विधि 





  • पहले एक हवन कुंड या पात्र में लकडियां जमायें.
  • अब उसमें "आं अग्नये नमः" मंत्र बोलते हुए आग लगायें.
  • ७ बार "ॐ अग्नये स्वाहा"  मंत्र से आहुति डालें.
  • ३ बार "ॐ गं गणपतये स्वाहा"  मंत्र से आहुति डालें.
  • ३ बार "ॐ भ्रं भैरवाय स्वाहा"  मंत्र से आहुति डालें.
  • २१ बार "ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः स्वाहा"  मंत्र से आहुति डालें.
  • 11 बार  "ॐ जानकी वल्लभाय स्वाहा"  मंत्र से आहुति डालें.
  • अब जिस हनुमान मन्त्र का जाप कर रहे थे उस मन्त्र से स्वाहा लगाकर  १०८ बार आहुति डालें.
  • अंत में अपने दोनों कान पकडकर गलतियों के लिये क्षमा मांगे.

16 अप्रैल 2024

हनुमान जी के 108 नाम

  हनुमान जी के 108 नाम 



1 ॐ अक्षहन्त्रे नमः।

2 ॐ अन्जनागर्भ सम्भूताय नमः।

3 ॐ अशोकवनकाच्छेत्रे नमः।

4 ॐ आञ्जनेयाय नमः।

5 ॐ कपिसेनानायकाय नमः।

6 ॐ कपीश्वराय नमः।

7 ॐ कबळीकृत मार्ताण्डमण्डलाय नमः।

8 ॐ काञ्चनाभाय नमः।

9 ॐ कामरूपिणे नमः।

10 ॐ काराग्रह विमोक्त्रे नमः।

11 ॐ कालनेमि प्रमथनाय नमः।

12 ॐ कुमार ब्रह्मचारिणे नमः।

13 ॐ केसरीसुताय नमः।

14 ॐ गन्धमादन शैलस्थाय नमः।

15 ॐ गन्धर्व विद्यातत्वज्ञाय नमः।

16 ॐ चञ्चलाय नमः।

17 ॐ चतुर्बाहवे नमः।

18 ॐ चिरञ्जीविने नमः।

19 ॐ जाम्बवत्प्रीतिवर्धनाय नमः।

20 ॐ तत्वज्ञानप्रदाय नमः।

21 ॐ दशग्रीव कुलान्तकाय नमः।

22 ॐ दशबाहवे नमः।

23 ॐ दान्ताय नमः।

24 ॐ दीनबन्धुराय नमः।

25 ॐ दृढव्रताय नमः।

26 ॐ दैत्यकार्य विघातकाय नमः।

27 ॐ दैत्यकुलान्तकाय नमः।

28 ॐ धीराय नमः।

29 ॐ नवव्याकृतपण्डिताय नमः।

30 ॐ पञ्चवक्त्राय नमः।

31 ॐ परमन्त्र निराकर्त्रे नमः।

32 ॐ परयन्त्र प्रभेदकाय नमः।

33 ॐ परविद्या परिहाराय नमः।

34 ॐ परशौर्य विनाशनाय नमः।

35 ॐ पारिजात द्रुमूलस्थाय नमः।

36 ॐ पार्थ ध्वजाग्रसंवासिने नमः।

37 ॐ पिङ्गलाक्षाय नमः।

38 ॐ प्रतापवते नमः।

39 ॐ प्रभवे नमः।

40 ॐ प्रसन्नात्मने नमः।

41 ॐ प्राज्ञाय नमः।

42 ॐ बल सिद्धिकराय नमः।

43 ॐ बालार्कसद्रशाननाय नमः।

44 ॐ ब्रह्मास्त्र निवारकाय नमः।

45 ॐ भविष्यथ्चतुराननाय नमः।

46 ॐ भीमसेन सहायकृते नमः।

47 ॐ मनोजवाय नमः।

48 ॐ महाकायाय नमः।

49 ॐ महातपसे नमः।

50 ॐ महातेजसे नमः।

51 ॐ महाद्युतये नमः।

52 ॐ महाबल पराक्रमाय नमः।

53 ॐ महारावण मर्दनाय नमः।

54 ॐ महावीराय नमः।

55 ॐ मायात्मने नमः।

56 ॐ मारुतात्मजाय नमः।

57 ॐ योगिने नमः।

58 ॐ रक्षोविध्वंसकारकाय नमः।

59 ॐ रत्नकुण्डल दीप्तिमते नमः।

60 ॐ रामकथा लोलाय नमः।

61 ॐ रामचूडामणिप्रदायकाय नमः।

62 ॐ रामदूताय नमः।

63 ॐ रामभक्ताय नमः।

64 ॐ रामसुग्रीव सन्धात्रे नमः।

65 ॐ रुद्र वीर्य समुद्भवाय नमः।

66 ॐ लक्ष्मणप्राणदात्रे नमः।

67 ॐ लङ्कापुर विदायकाय नमः।

68 ॐ लन्किनी भञ्जनाय नमः।

69 ॐ लोकपूज्याय नमः।

70 ॐ वज्रकायाय नमः।

71 ॐ वज्रदेहाय नमः।

72 ॐ वज्रनखाय नमः।

73 ॐ वागधीशाय नमः।

74 ॐ वाग्मिने नमः।

75 ॐ वानराय नमः।

76 ॐ वार्धिमैनाक पूजिताय नमः।

77 ॐ जितेन्द्रियाय नमः।

78 ॐ विभीषण प्रियकराय नमः।

79 ॐ शतकन्टमुदापहर्त्रे नमः।

80 ॐ शरपञ्जर भेदकाय नमः।

81 ॐ शान्ताय नमः।

82 ॐ शूराय नमः।

83 ॐ शृन्खला बन्धमोचकाय नमः।

84 ॐ श्री राम हृदयस्थाये नमः 

85 ॐ श्रीमते नमः।

86 ॐ संजीवननगायार्था नमः।

87 ॐ सर्वग्रहबाधा विनाशिने नमः।

88 ॐ सर्वतन्त्र स्वरूपिणे नमः।

89 ॐ सर्वदुखः हराय नमः।

90 ॐ सर्वबन्धविमोक्त्रे नमः।

91 ॐ सर्वमन्त्र स्वरूपवते नमः।

92 ॐ सर्वमायाविभंजनाय नमः।

93 ॐ सर्वयन्त्रात्मकाय नमः।

94 ॐ सर्वरोगहराय नमः।

95 ॐ सर्वलोकचारिणे नमः।

96 ॐ सर्वविद्या सम्पत्तिप्रदायकाय नमः।

97 ॐ सागरोत्तारकाय नमः।

98 ॐ सिंहिकाप्राण भञ्जनाय नमः।

99 ॐ सीतादेविमुद्राप्रदायकाय नमः।

100 ॐ सीतान्वेषण पण्डिताय नमः।

101 ॐ सीताशोक निवारकाय नमः।

102 ॐ सीतासमेत श्रीरामपाद सेवदुरन्धराय नमः।

103 ॐ सुग्रीव सचिवाय नमः।

104 ॐ सुचये नमः।

105 ॐ सुरार्चिताय नमः।

106 ॐ स्फटिकाभाय नमः।

107 ॐ हनूमते नमः।

108 ॐ हरिमर्कट मर्कटाय नमः।


इन नामों का उच्चारण करें नमः के साथ चावल, सिंदूर,पुष्प अर्पित करें । 


दुर्घटना में रक्षा प्रदायक हनुमान /मारुति यंत्र

 दुर्घटना से बचाव के लिए : हनुमान मारुति यंत्र


 


वाहन यानि मोटर साइकल, स्कूटर, कार, आदि आज हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं । जिनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है । उसके साथ साथ दुर्घटनाओं की संख्या और संभावनाएं भी बढ़ती जा रही हैं । वाहन दुर्घटनाओं का होना जीवन में कई प्रकार के संकट और दुखद परिस्थितियों को निर्मित कर सकता है। इस प्रकार की दुर्घटनाएं आकस्मिक होती हैं और कई बार घातक भी हो सकती हैं ।

हम सावधानी से गाड़ी चलाएं, हेलमेट सीट बेल्ट का उपयोग करें , एयर बैग वाली गाड़ियों मे सफर करें तो नुकसान की संभावना कम होती जाती है । ये सारे रक्षा कारक उपाय हैं । जो आपके बड़े नुकसान को छोटा कर देता है , आपके प्राण बचा लेता है । 

कुछ आध्यात्मिक उपाय भी ऐसे हैं जो दुर्घटनाओं मे आपको सुरक्षा देने के लिए प्रयुक्त होते हैं ।

इसमे से एक सरल और सस्ता उपाय है श्री हनुमान/मारुति यंत्र ।

हनुमान जी को संकट मोचक कहा जाता है । उनका यंत्र आप अपने वाहन मे रखें या फिर अपने साथ जेब मे रखें तो यह हनुमान जी की कृपा से रक्षा प्रदायक माना गया है । 

श्री हनुमान/मारुति यंत्र आप चाहे तो दुकान से भी प्राप्त कर सकते हैं और उस पर पूजन करके अपनी जेब में या अपनी गाड़ी में रख सकते हैं । इसके लिए आप उसे सामने रखकर ११ बार हनुमान चालीसा का पाठ कर सकते हैं 

यदि आप चाहें तो हनुमान/मारुति यंत्र इस हनुमान जन्मोत्सव (23 अप्रैल 2024) के अवसर पर आपके नाम से अभिमंत्रित करके मेरे पास से भी प्राप्त कर सकते हैं । यंत्र उसे धारण करने/रखने के निर्देशों तथा विधि के साथ , हनुमान जयंती के एक या दो दिन के बाद आपको स्पीड पोस्ट से भेज दिया जाएगा । जो समान्यतः एक हफ्ते मे आपके पास पोस्टमेन द्वारा पहुंचा दिया जाएगा । इसके लिए अपना पूरा पता पिन कोड और फोन नंबर जिसपर पोस्टमेन संपर्क कर सके अवश्य भेजें । 

दुर्घटना में रक्षा प्रदायक हनुमान /मारुति यंत्र प्राप्त करने के लिए आप अपना नाम, [जन्म तिथि, जन्म समय, जन्म स्थान, गोत्र ( यदि मालूम हो तो )],  अपनी एक ताजा फोटो के साथ मेरे नंबर 7000630499 पर हनुमान जन्मोत्सव यानी 23 अप्रैल से पहले व्हाट्सएप्प कर दें ।

डाक व्यय सहित,यंत्र का पूजन शुल्क (₹ 251)दो सौ इक्यावन रुपए फोन पे, पेटीएम या गूगल पे से मेरे नंबर 7000630499 पर भेजकर उसकी रसीद भी उस के साथ व्हाट्सएप्प कर दें ।    

नमस्काराष्टक

 नमस्काराष्टक 


ॐ नमो भगवते श्रीरामाय परमात्मने। 

सर्वभूतान्तरस्थाय ससीताय नमो नमः ॥1॥ 


ॐ नमो भगवते श्रीराम चन्द्राय वेधसे। 

सर्ववेदांतवेदाय ससीताय नमो नमः ॥2॥ 


ॐ नमो भगवते श्रीविष्णवे परमात्मने। 

परात्पराय रामाय ससीताय नमो नमः॥ 3॥ 


ॐ नमो भगवते श्रीरघुनाथाय शांगिने। 

चिन्मयानन्दरूपाय ससीताय नमो नमः ॥4॥ 


ॐ नमो भगवते श्रीराम श्रीकृष्णाय मकरिणे। 

पूर्णज्ञानदेहाय ससीताय नमो नमः ॥5॥ 


ॐ नमो भगवते श्रीवासुदेवाय श्रीविष्णवे। 

पूर्णानंदैकरूपाय ससीताय नमो नमः ॥6॥ 


ॐ नमो भगवते श्रीराम रामभद्राय वेधसे। 

सर्वलोकशरणाय ससीताय नमो नमः ॥7॥ 


ॐ नमो भगवते श्रीरामयामिततेजसे। 

ब्रह्मानन्दैकरूपाय ससीताय नमो नमः ॥8॥ 


मंगलप्रद श्रीरामसुप्रभातस्तोत्र

 मंगलप्रद श्रीरामसुप्रभातस्तोत्र 



विघ्नेश्वरः सकलविघ्नविनाशदक्षो दक्षात्मजा भगवती हि सरस्वती च। दृप्ताष्टभैरवगणा नव दिव्यदुर्गा देव्यः सुरास्तु नृपते तव सुप्रभातम् ।। 

भानुः शशी कुजबुधौ गुरुशुक्रमन्दा राहुः सकेतुरदितिर्दितिरादितेयाः । शक्रादयः कमलभूः पुरुषोत्तमेन्द्रो रुद्रः करोतु सततं तव सुप्रभातम् ।। 

पृथ्वी जलं ज्वलनमारुतपुष्कराणि सप्ताद्रयोऽपि भुवनानि चतुर्दशैव। शैला वनानि सरितः परितः पवित्रा गंगादयो विदधतां तव सुप्रभातम् ॥

 दिक्चक्रमेतदखिलं दिगिभा दिगीशा नागाः सुपर्णभुजगा नगवीरुधश्च । पुण्यानि देवसदनानि बिलानि दिव्यान्यव्याहतं विदधतां तव सुप्रभातम् ॥ 

वेदाः षडंगसहिताः स्मृतयः पुराणं काव्यं सदागमपथो मुनयोऽपि दिव्याः। व्यासादयः परमकारुणिका ऋषीणां गोत्राणि वै विदधतां तव सुप्रभातम् ।। 


 'हे नृपते! समस्त विघ्नोंका निवारण करनेमें अत्यन्त कुशल विघ्नेश्वर भगवान् गणेश, दक्ष प्रजापतिकी पुत्री सती भगवती पार्वती, देवी सरस्वती, अभिमानी अष्टभैरव, नौ दिव्य दुर्गा, देवियाँ और समस्त देवता- ये सभी आपके प्रभातको मंगलमय बनायें। सूर्यनारायण, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनैश्वर, राहु तथा केतु-ये नौ ग्रह, देवमाता अदिति, दैत्यमाता दिति, अदितिके पुत्र इन्द्रादि सभी देवता, कमलयोनि ब्रह्मा, पुरुषोत्तम विष्णु तथा भगवान् शिव-ये सभी आपके प्रभातको मंगलमय बनायें। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, सातों पर्वत, चौदह भुवन, सभी शैल, वन और गंग आदि पवित्र नदियाँ- ये सभी ओरसे आपके प्रभातको मंगलमय बनायें। समस्त दिशाएँ, समस्त दिशाओंके हाथी, समस्त दिक्पाल, नाग, सुपर्ण, सर्प, पर्वत, वनस्पतियाँ, पवित्र देवायतन तथा दिव्य गिरि-कन्दराएँ- ये सभी निर्विघ्नरूपसे आपके प्रभातको सर्वदा मंगलमय बनायें। शिक्षा, कल्प निरुक्त, व्याकरण, छन्द तथा ज्योतिष - इन षट् वेदांगोंके साथ ऋगादि सभी वेद, मन्वादि स्मृतिय भागवत आदि पुराण, सभी काव्य, उत्तम आगम मार्ग, दिव्य मुनिगण, परम दयालु व्यास, वाल्मीकि आदि महर्षि तथा सभी ऋषियोंके गोत्र-ये सभी आपके प्रभातकालको मंगलमय बनायें।' 

साभार- आनंद रामायण -गीता प्रेस । 

15 अप्रैल 2024

हनुमान चालीसा से बनायें रक्षा कवच

 हनुमान चालीसा से बनायें रक्षा कवच 



हनुमान चालीसा एक बेहद लोकप्रिय उपाय है जो बहुत सारे लोग प्रयोग में लाते हैं ।  

इसकी भाषा सरल है इसलिए कोई भी इसका प्रयोग कर सकता है । 

हनुमान जी अमर है ! चिरंजीवी है !! 

इसलिए उनकी उपस्थिति आज भी पृथ्वी पर महसूस की जाती है । 


रक्षा कवच 

हनुमान चालीसा को रक्षा कवच के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है । 


इसके लिए एक छोटे आकार की हनुमान चालीसा ले लें । उसे रखने लायक गेरुए कलर का कपड़ा ले लें जिसमे आप उसे लपेट कर रख सकें या उससे छोटा पॉकेट जैसा बना लें ।  

हनुमान जयंती से या किसी भी पूर्णिमा के दिन से प्रारंभ करें और उस हनुमान चालीसा के 11 पाठ रोज करें ,  ऐसा अगली पूर्णिमा तक करें यानी कुल मिलाकर लगभग 30 दिनों तक आपका पाठ होगा । पाठ हो जाने के बाद उसे उस कपड़े या पॉकेट में बंद करके रख ले ।  उसे इस प्रकार से रखें कि कोई दूसरा व्यक्ति उसे स्पर्श ना कर सके ।  यानी आपको 30 दिनों तक उसे दूसरों से छुपा कर रखना है ॥ 

पूर्णिमा से पूर्णिमा तक पाठ कर लेने के बाद आप उस हनुमान चालीसा को उस कपड़े में लपेटकर हमेशा अपने साथ रखें तथा नित्य एक बार हनुमान चालीसा का पाठ करें जिससे आपको सभी प्रकार के बाधाओं में हनुमान जी की कृपा से रक्षा प्राप्त होगी । 

11 अप्रैल 2024

रुद्राक्ष : एक अद्भुत आध्यात्मिक फल



रुद्राक्ष : एक अद्भुत आध्यात्मिक फल 


रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है रूद्र और अक्ष । 

रुद्र = शिव, अक्ष = आँख 

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के आंखों से गिरे हुए आनंद के आंसुओं से रुद्राक्ष के फल की उत्पत्ति हुई थी । 

रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक पाए जाते हैं । 

रुद्राक्ष साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण चीज है लगभग सभी साधनाओं में रुद्राक्ष की माला को स्वीकार किया जाता है एक तरह से आप इसे माला के मामले में ऑल इन वन कह सकते हैं 


अगर आप तंत्र साधनाएं करते हैं या किसी की समस्या का समाधान करते हैं तो आपको रुद्राक्ष की माला अवश्य पहननी चाहिए ।


यह एक तरह की आध्यात्मिक बैटरी है जो आपके मंत्र जाप और साधना के द्वारा चार्ज होती रहती है और वह आपके इर्द-गिर्द एक सुरक्षा घेरा बनाकर रखती है जो आपकी रक्षा तब भी करती है जब आप साधना से उठ जाते हैं और यह रक्षा मंडल आपके चारों तरफ दिनभर बना रहता है ।

पंचमुखी रुद्राक्ष सबसे सुलभ और सस्ते होते हैं । जैसे जैसे मुख की संख्या कम होती जाती है उसकी कीमत बढ़ती जाती है । एक मुखी रुद्राक्ष सबसे दुर्लभ और सबसे महंगे रुद्राक्ष है । इसी प्रकार से पांच मुखी रुद्राक्ष के ऊपर मुख वाले रुद्राक्ष की मुख की संख्या के हिसाब से उसकी कीमत बढ़ती जाती है । 21 मुखी रुद्राक्ष भी बेहद दुर्लभ और महंगे होते हैं ।

पांच मुखी रुद्राक्ष सामान्यतः हर जगह उपलब्ध हो जाता है और आम आदमी उसे खरीद भी सकता है पहन भी सकता है । पाँच मुखी रुद्राक्ष के अंदर भी आध्यात्मिक शक्तियों को समाहित करने के गुण होते हैं ।


गृहस्थ व्यक्ति , पुरुष या स्त्री , पांच मुखी रुद्राक्ष की माला धारण कर सकते हैं और अगर एक दाना धारण करना चाहे तो भी धारण कर सकते हैं ।

रुद्राक्ष की माला से बीपी में भी अनुकूलता प्राप्त होती है


रुद्राक्ष पहनने के मामले में सबसे ज्यादा लोग नियमों की चिंता करते हैं ।

मुझे ऐसा लगता है कि जैसे भगवान शिव किसी नियम किसी सीमा के अधीन नहीं है, उसी प्रकार से उनका अंश रुद्राक्ष भी परा स्वतंत्र हैं । उनके लिए किसी प्रकार के नियमों की सीमा का बांधा जाना उचित नहीं है.......


रुद्राक्ष हर किसी को सूट नहीं करता यह भी एक सच्चाई है और इसका पता आपको रुद्राक्ष की माला पहनने के महीने भर के अंदर चल जाएगा । अगर रुद्राक्ष आपको स्वीकार करता है तो वह आपको अनुकूलता देगा ।

आपको मानसिक शांति का अनुभव होगा आपको अपने शरीर में ज्यादा चेतना में महसूस होगी......

आप जो भी काम करने जाएंगे उसमें आपको अनुकूलता महसूस होगी ....

ऐसी स्थिति में आप रुद्राक्ष को धारण कर सकते हैं वह आपके लिए अनुकूल है !!!

इसके विपरीत स्थितियाँ होने से आप समझ जाइए कि आपको रुद्राक्ष की माला नहीं पहननी है ।

रुद्राक्ष पहनने वाले के मन जो सबसे ज्यादा संशय की बात होती है वह यह है कि रुद्राक्ष असली है या नहीं है । आज के युग में 100% शुद्धता की बात करना बेमानी है । ऑनलाइन में कई प्रकार के सर्टिफाइड रुद्राक्ष भी उपलब्ध है । उनमें से भी कई नकली हो सकते हैं, ऐसी स्थिति में मेरे विचार से आप किसी प्रामाणिक गुरु से या आध्यात्मिक संस्थान से रुद्राक्ष प्राप्त करें तो ज्यादा बेहतर होगा ।

सिद्ध तांत्रिक गुरु मे यह क्षमता होती है कि वह आपके अनुसार रुद्राक्ष का अनुकूलन कर सकता है यानि वह रुद्राक्ष को इस प्रकार से जागृत कर सकता है कि वह आपको अनुकूल परिणाम प्रदान कर सके ।


गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी 

रुद्राक्ष  होने वाले लाभ 
8 मुखी  - बालकों के लिए पढ़ाई मे अनुकूलता और रक्षा 
9 मुखी  - साधना और शक्ति मे अनुकूलता 
10 मुखी - दस महाविद्या कवच , सर्वविध रक्षा के लिए
11 मुखी - स्वास्थ्य लाभ और शत्रु बाधा निवारण 
12 मुखी  - राजनैतिक लाभ और पदोन्नति के लिए
13 मुखी  - कामशक्ति और वैवाहिक संबंधो मे सफलता
14 मुखी  हनुमान रक्षा कवच 

इस प्रकार के ओरिजिनल नेपाली सिद्ध रुद्राक्ष जो कि सीमित मात्रा मे ही उपलब्ध होते हैं उन्हे आप मेरे गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी के पास से प्राप्त कर सकते हैं । इसके लिए आप उनके शिष्य प्रशांत पांडे जी से संपर्क कर सकते हैं, उनका नंबर है - 8800458271


10 अप्रैल 2024

हनुमान साधना के सामान्य नियम

 

  • ब्रह्मचर्य का पालन किया जाना चाहिये.
  • साधना का समय रात्रि ९ से सुबह ६ बजे तक.
  • साधना कक्ष में हो सके तो किसी बाहरी व्यक्ति को प्रवेश न दें.
  • जाप संख्या ११,००० होगी.
  • प्रतिदिन चना,गुड,बेसन लड्डू,बूंदी में से किसी एक वस्तु का भोग लगायें.
  • हवन ११०० मन्त्र का होगा, इसमें जाप किये जाने वाले मन्त्र के अन्त में स्वाहा लगाकर सामग्री अग्नि में डालना होता है.
  • हवन सामग्री में गुड का चूरा मिला लें.
  • वस्त्र तथा आसन लाल रंग का होगा.
  • रुद्राक्ष की माला से जाप होगा.
  • 9 अप्रैल 2024

    सिद्धकुंजिका स्तोत्रम : भावार्थ सहित

     सिद्धकुंजिका स्तोत्रम : भावार्थ सहित 


    शिव उवाच -----
    श्रूणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिका स्तोत्रमुत्तमम ।
    येन मंत्रप्रभावेण चण्डीजाप: शुभो भवेत ॥ १॥

    अर्थ - शिव जी बोले-देवी! सुनो। मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र बताता हूँ, जिस मन्त्र(स्तोत्र) के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) शुभ (सफल) होता है । 

    न कवचं न अर्गला स्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम ।
    न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वा अर्चनं ॥ २॥

    अर्थ - (इसका पाठ करने से)कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है । 

    कुंजिका पाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत ।
    अति गुह्यतरं देवी देवानामपि दुर्लभं ॥ ३॥

    अर्थ - केवल कुंजिका स्तोत्र के पाठ कर लेने से दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाता है। (यह कुंजिका) अत्यंत गोपनीय और देवताओं के लिए भी दुर्लभ है अर्थात इतना महत्वपूर्ण है । 

    गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
    मारणं मोहनं वश्यं स्तंभनं उच्चाटनादिकम ।
    पाठ मात्रेण संसिद्धयेत कुंजिकास्तोत्रं उत्तमम ॥ ४ ॥
    अर्थ - हे पार्वती! जिस प्रकार स्त्री अपने गुप्त भाग (स्वयोनि) को सबसे गुप्त रखती है अर्थात छुपाकर या ढँककर रखती है उसी भांति इस कुंजिका स्तोत्र को भी प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए। यह कुंजिकास्तोत्र इतना उत्तम (प्रभावशाली ) है कि केवल इसके पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि (अभिचारिक षट कर्मों ) को सिद्ध करता है ( अभीष्ट फल प्रदान करता है ) । 

    अथ मंत्र : ।
    ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ॥
    ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट स्वाहा ॥ इति मंत्र: ॥


    नमस्ते रुद्ररुपिण्ये नमस्ते मधुमर्दिनि ।
    नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥1॥

    अर्थ - हे रुद्ररूपिणी! तुम्हे नमन है । हे मधु नामक दैत्य का मर्दन करने (मारने) वाली! तुम्हे नमस्कार है। कैटभ और महिषासुर नामक दैत्यों को मारने वाली माई ! मैं आपके श्री चरणों मे प्रणाम करता हूँ ।. 


    नमस्ते शूम्भहंत्र्यै च निशुंभासुरघातिनि ॥
    जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥2॥

    अर्थ - दैत्य शुम्भ का हनन करने (मारने) वाली और दैत्य निशुम्भ का घात करने (मारने) वाली! माता मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ आप मेरे जप (पाठ द्वारा इस कुंजिका स्तोत्र)को जाग्रत और (मेरे लिए)सिद्ध करो। 

    ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
    क्लींकारी कामरुपिण्यै बीजरुपे नमोस्तुते ॥3॥

    अर्थ - ऐंकार ( ऐं बीज मंत्र जो कि सृष्टि कर्ता ब्रह्मा की शक्ति सरस्वती का बीज मंत्र है ) के रूप में सृष्टिरूपिणी( उत्पत्ति करने वाली ), ‘ह्रीं’ ( भुवनेश्वरी महालक्ष्मी बीज जो कि पालन कर्ता  श्री हरि विष्णु की शक्ति है )के रूप में सृष्टि का पालन करने वाली क्लीं (काम / काली बीज )के रूप में  क्रियाशील होने वाली बीजरूपिणी (सबका मूल  या बीज  स्वरूप वाली ) हे देवी! मैं तुम्हे बारम्बार  नमस्कार करता हूँ । 


    चामुंडा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनि ।
    विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररुपिणि ॥4॥

    अर्थ - (नवार्ण मंत्र मे प्रयुक्त "चामुंडायै" शब्द मे )"चामुंडा" के रूप में तुम मुण्ड(अहंकार और दुष्टता का) विनाश करने वाली हो, और ‘यैकार’ के रूप में वर देने वाली (भक्त की रक्षा और उसकी मनोकामना की पूर्ति प्रदान करने वाली )हो । ’विच्चे’ रूप में तुम नित्य ही अभय देती हो।(इस प्रकार आप स्वयं नवार्ण मंत्र "ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ") मन्त्र का स्वरुप हो । 

    धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
    क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥5॥

    धां धीं धूं’ के रूप में धूर्जटी (शिव) की तुम पत्नी हो। ‘वां वीं वूं’ के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो। ‘क्रां क्रीं क्रूं’ के रूप में कालिकादेवी, ‘शां शीं शूं’ के रूप में मेरा शुभ अर्थात कल्याण करो, मेरा अभीष्ट सिद्ध करो ।.

    हुं हुं हुंकाररुपिण्यै जं जं जं जंभनादिनी ।
    भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नम: ॥6॥

    बीजमंत्रों मे (वायु बीज)'हुं हुं हुंकार’ के स्वरूप वाली , ‘जं जं जं’ (जं बीज का नाद करने वाली)जम्भनादिनी, ‘भ्रां भ्रीं भ्रूं’ के रूप में (भैरव बीज स्वरूपा भैरवी शक्ति ), संसार मे भद्रता(सज्जनता) की स्थापना करने वाली हे भवानी! मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ ।. 

    अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
    धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥7॥

    ।।7।।’अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ’ इन सब बीज मंत्रों को जागृत करो, मेरे सभी पाशों को तोड़ो और मेरी चेतना को दीप्त ( प्रकाशित या उज्ज्वल प्रकाशमान ) करो, और (न्युनताओं को भस्मीभूत ) स्वाहा करो । 

    पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥
    सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धीं कुरुष्व मे ॥8॥

    ’पां पीं पूं’ के रूप में तुम पार्वती अर्थात भगवान शिव की पूर्णा शक्ति हो। ‘खां खीं खूं’ के रूप में तुम खेचरी (आकाशचारिणी) या परा शक्ति हो।।8।।’सां सीं सूं’ स्वरूपिणी सप्तशती देवी के इस विशिष्ट मन्त्र की मुझे सिद्धि प्रदान करो। 

    फलश्रुति:-

    इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ॥ अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥
    यह सिद्धकुंजिका स्तोत्र (नवार्ण) मन्त्र को जगाने(चैतन्य करने /सिद्धि प्रदायक बनाने)  के लिए है। इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिए। हे पार्वती ! इस मन्त्र को गुप्त रखकर इसकी रक्षा करनी चाहिए  ।.

    यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत ॥ न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥

    हे देवी ! जो बिना कुंजिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में (निर्जन स्थान पर जहां कोई देखने सुनने वाला न हो ) रोना निरर्थक होता है।


    इति श्री रुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम ॥


    वर्तमान समय मे मेरे गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी को सर्वश्रेष्ठ तंत्र मंत्र मर्मज्ञ के रूप मे निर्विवाद रूप से स्वीकार किया जाता है । आप उनके द्वारा सम्पन्न कराये गए विभिन्न मंत्र प्रयोगों को यूट्यूब पर सर्च करके देख और सुन सकते हैं । उनके प्रत्येक प्रयोग मे आप देख सकते हैं कि वे रक्षा के लिए कुंजिका स्तोत्र का ही पाठ प्रारम्भ मे करवाते थे । इसी से आप इसका महत्व और शक्ति को समझ सकते हैं ।.

    नवरात्रि मे इसका 108 पाठ या जितना आप कर सकें दीपक जलाकर सम्पन्न करें और उसके बाद नित्य एक बार इसका पाठ करें तो आपके ऊपर छोटे मोटे तंत्र प्रयोग, टोने टोटके का असर ही नहीं होगा और बड़े तंत्र प्रयोग जैसे मारण अगर किए गए तो भी वे घातक नहीं हो पाएंगे । भगवती का यह सिद्ध स्तोत्र आपकी रक्षा कर लेगा ।  




    7 अप्रैल 2024

    भगवती बगलामुखी दीक्षा

      


    भगवती बगलामुखी की साधना से संबंधित विभिन्न साधनात्मक जानकारियों तथा गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता साधना सिंह जी से 


    भगवती बगलामुखी दीक्षा
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    साधना सिद्धि विज्ञान
    जैस्मिन - 429
    न्यू मिनाल रेजीडेंसी
    जे.के.रोड
    भोपाल [म.प्र.] 462011
    phone -[0755]-4283681
     
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    साधना सिद्धि विज्ञान मासिक पत्रिका



    यह पत्रिका तंत्र साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये  स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. साधना  सिद्धि विज्ञान पत्रिका में महाविद्या साधना , भैरव साधना, काली साधना,  अघोर साधना, अप्सरा साधना इत्यादि के विषय में जानकारी मिलेगी .इसमें आपको विविध साधनाओं के मंत्र तथा पूजन विधि का प्रमाणिक विवरण मिलेगा .देश भर में लगने वाले विभिन्न साधना शिविरों के विषय में जानकारी मिलेगी .------------------------------------------------------------------------------------
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    बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र का उच्चारण

     बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र 



    बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र

         बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र





    ॐ नमो भगवति चामुण्डे नरकंक गृध्रोलूक परिवार सहिते श्मशानप्रिये नररुधिरमांस चरु भोजन प्रिये ! सिद्ध विद्याधर वृन्द वंदित चरणे बृह्मेशविष्णु वरुण कुबेर भैरवी भैरव प्रिये इन्द्रक्रोध विनिर्गत शरीरे द्वादशादित्य चण्डप्रभे अस्थि मुण्ड कपाल मालाभरणे शीघ्रं दक्षिण दिशि आगच्छ आगच्छ, मानय मानय, नुद नुद, सर्व शत्रुणां मारय मारय, चूर्णय चूर्णय, आवेशय आवेशय, त्रुट त्रुट, त्रोटय त्रोटय, स्फुट स्फुट, स्फोटय स्फोटय, महाभूतान् जृम्भय जृम्भय, ब्रह्मराक्षसान उच्चाटय उच्चाटय, भूत प्रेत पिशाचान् मूर्च्छय मूर्च्छय, मम शत्रुन उच्चाटय उच्चाटय,  शत्रून चूर्णय चूर्णय, सत्यं कथय कथय, वृक्षेभ्यः संन्नाशय संन्नाशय अर्कं स्तंभय स्तंभय , गरुड पक्षपातेन विषं निर्विषं कुरु कुरु, लीलांगालयवृक्षेभ्यः परिपातय परिपातय, शैलकाननमहीं मर्दय मर्दय, मुखं उत्पाटय उत्पाटय, पात्रं पूरय पूरय, भूतभविष्यं यत्सर्व कथय कथय, कृन्त कृन्त, दह दह, पच पच, मथ मथ, प्रमथ प्रमथ, घर्घर घर्घर, ग्रासय ग्रासय, विद्रावय विद्रावय उच्चाटय उच्चाटय, विष्णुचक्रेण वरुणपाशेन इन्द्रवज्रेण ज्वरं नाशय नाशय, प्रविदं स्फोटय स्फोटय , सर्वशत्रून मम वशं कुरु कुरु, पातालं प्रत्यंतरिक्षं आकाशग्रहं आनय आनय, करालि विकरालि महाकालि, रुद्रशक्ते पूर्वदिशं निरोधय निरोधयपश्चिमदिशं स्तम्भय स्तम्भयदक्षिणदिशं निधय निधयउत्तरदिशं बंधय बंधय, ह्रां ह्रीं ॐ बंधय बंधय, ज्वालामालिनी स्तम्भिनी मोहिनि, मुकुट विचित्र कुण्डल नागादि वासुकी कृत हारभूषणे मेखला चन्द्रार्कहास प्रभंजने विद्युत्स्फुरित सकाश साट्टहास निलय निलय, हुं फट्, हुं फट् विजृंभित शरीरे सप्तद्वीप कृते ब्रह्माण्ड विस्तारित स्तन युगले असि मुसल परशु तोमर क्षुरिपाश हलेषु वीरान् शमय शमय, सहस्त्र बाहु परापरादिशक्ति विष्णु शरीरे, शंकर ह्रदयेश्वरी बगलामुखी ! सर्वदुष्टान् विनाशय विनाशय, हुं फट् स्वाहा ।

    ॐ ह्लीं बगलामुखी ये केचनापकारिणः सन्ति, तेषां वाचं मुखं स्तम्भय स्तम्भय, जिह्वां कीलय कीलय, बुद्धिं विनाशय विनाशय, ह्रीं ॐ स्वाहा !

    ॐ ह्रीं हिली हिली सर्व शत्रुणां वाचं मुखं पदं स्तम्भय , शत्रुजिह्वां कीलय, शत्रूणां दृष्टिमुष्टि गति मति दंत तालु जिह्वां बंधय बंधय, मारय मारय, शोषय शोषय हुं फट् स्वाहा ।

     महाविद्या बगलामुखी की कृपा प्रदान करता है । 

    स्तोत्र है इसलिए वे भी कर सकते हैं जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है । लेकिन वे नित्य 11 पाठ से ज्यादा ना करें । 

    नित्य क्षमतानुसार 1,3,5,7,9,11,16,21,33,51,108 पाठ करें ।


    सामने सरसों के तेल का दीपक लगा लें । 
    रात्री काल बेहतर है । 
    पीले रंग का आसन और वस्त्र  । 
    सात्विक विद्या है । 
    ब्रह्मचर्य का पालन करें । 
    सात्विक आचार विचार व्यवहार रखें  । 
    नशा और मांसाहार निषेध है । 
    उत्तर या पूर्व दिशा की ओर देखते हुए करें । 
    शत्रु बाधा निवारण, तथा सर्वविध रक्षा के लिए उपयोगी है । 
    नवरात्रि मे ज्यादा लाभ प्रदायक है । 

    विधि :-

    पहले दिन हाथ मे जल लेकर इच्छा बोलेंगे और माता के चरणों मे छोड़ देंगे । 

    गुरु बनाया हो तो एक माला गुरु मंत्र की करें । 
    अगर गुरु न हो तो एक माला निम्नलिखित मंत्र की करें :
    ।। ॐ गुं  गुरुभ्यो नमः ।। 

    गुरु मंत्र का जाप रुद्राक्ष या किसी भी माला से कर सकते हैं । 

    उसके बाद "ह्लीं " [ hleem ] मंत्र का उच्चारण करते हुए अपने शरीर को सर से पाँव तक छू लेंगे और ऐसी भावना करेंगे कि देवी बगलामुखी आपके शरीर मे स्थापित हो रही हैं । 
    इसके बाद पाठ प्रारंभ करें । 
    पाठ की गिनती आप किसी भी चीज से कर सकते हैं , कागज पेंसिल पर भी कर सकते हैं । 

    आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
    इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

     

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    एक अक्षरीय मंत्र के माध्यम से बगलामुखी साधना

     सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमालीजी के श्रीमुख से 




    एक अक्षरीय मंत्र के माध्यम से बगलामुखी साधना 

    भगवती बगलामुखी की साधना के सामान्य नियम

       


    भगवती बगलामुखि की साधना सामान्यतः शत्रुनाश और मुकदमों में विजय प्राप्ति के लिये की जाती है.इस साधना के सामान्य नियम :-

    1. साधक को सात्विक आचार तथा व्यवहार रखना चाहिये.
    2. साधना काल में पीले रंग के वस्त्र तथा आसन का उपयोग करॆं.
    3. साधना रात्रिकालीन है अर्थात रात्रि ९ से सुबह ४ के मध्य मन्त्र जाप करें.
    4. साधनाकाल में क्रोध ना करें.
    5. साधना काल में यथासंभव ब्रह्मचर्य का पालन करें.
    6. साधनाकाल में किसी स्त्री का अपमान ना करें.
    7. हल्दी या पीली हकीक की माला से जाप करें.
    8. साधना करने से पहले गुरु दीक्षा और बगलामुखी दीक्षा ले लें  । 
    9. गुरु से अनुमति लेकर ही यह साधना करें. 
    10. यह साधना उग्र साधना है इसलिये नन्हे बालक तथा कमजोर मानसिक स्थिति वाले इस साधना को ना करें.
    11. सामान्यतः सवा लाख जाप का पुरश्चरण तथा १२५०० मन्त्रों से हवन किया जाना अपेक्षित है.
    12. हवन पीली सरसों से किया जायेगा.

    सूर्यग्रहण विशेष - तारा शाबर मंत्र

       

    सूर्यग्रहण विशेष - तारा शाबर मंत्र



    ॐ आदि योग अनादि माया । 
    जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया ।
    ब्रह्माण्ड समाया । 

    आकाश मण्डल । 
    तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै । 

    ब्रह्म कापलिजहाँ पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्तिसूरज मुख तपे । 
    चंद मुख अमिरस पीवे
    अग्नि मुख जले
    आद कुंवारी हाथ खण्डाग गल मुण्ड माल
    मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा । 
    नीली काया पीली जटा
    काली दन्त में जिह्वा दबाया । 
    घोर तारा अघोर तारा
    दूध पूत का भण्डार भरा । 
    पंच मुख करे हा हा ऽऽकारा
    डाकिनी शाकिनी भूत पलिता 
    सौ सौ कोस दूर भगाया । 
    चण्डी तारा फिरे ब्रह्माण्डी 
    तुम तो हों तीन लोक की जननी ।

    तारा मंत्र
    ॐ ऐं ह्रीं स्त्रीं हूँ फट्

    विधि :-
    1. रात्री काल मे जाप करें । ग्रहण काल मे जाप करने से विशेष लाभदायक है । 
    2. अपनी क्षमतानुसार 1,11,21,51,108 बार । 
    3. व्यापार और आर्थिक समृद्धि के लिए लाभदायक । 
    4. जप काल मे किसी स्त्री का अपमान न करें ।