एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
Disclaimer
20 अप्रैल 2024
परम तेजस्वी गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का तान्त्रोक्त मन्त्र
- यह परम तेजस्वी गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का तान्त्रोक्त मन्त्र है.
- पूर्ण ब्रह्मचर्य / सात्विक आहार/आचार/विचार के साथ जाप करें.
- पूर्णिमा से प्रारंभ कर अगली पूर्णिमा तक करें.
- तीन लाख मंत्र का पुरस्चरण होगा.
- नित्य जाप निश्चित संख्या में करेंगे .
- रुद्राक्ष की माला से जाप होगा.
- जाप के बाद वह माला गले में धारण कर लेंगे.
- यथा संभव मौन रहेंगे.
- किसी पर क्रोध नहीं करेंगे.
- यह साधना उन लोगों के लिए है जो साधना के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहते हैं.
- यह साधना आपके अन्दर शिवत्व और गुरुत्व पैदा करेगी.
- यह साधना वैराग्य की साधना है.
- यह साधना जीवन का सौभाग्य है.
- यह साधना आपको धुल से फूल बनाने में सक्षम है.
- इस साधना से श्रेष्ट कोई और साधना नहीं है.
जीवन में राजसी टच देने वाली दीक्षा : राज्याभिषेक दीक्षा
आपने सभी क्षेत्रों में ऐसे लोगों को देखा होगा जो अलग दिखते हैं ।
राजा जैसे...
अलग से...
जिंदादिल....
मस्तमौला.....
जीवन में ऐसी ही राजसी टच देने वाली दीक्षा है राज्याभिषेक दीक्षा....
जो कोई विरला गुरु......
विरले अवसर पर ....
देता है।
पिछले 25 वर्ष में पहली बार मेरे गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी 21 अप्रेल को अपने शिष्यों को यह विशेष दीक्षा फोटो द्वारा ऑनलाइन दे रहे हैं ।
इस अवसर का लाभ उठाएं साधना और जीवन दोनो में विशिष्ठ बनें ।
रजिस्ट्रेशन के लिए संपर्क करे
करुणेश कर्ण (पटना):- 9852284595 (call or whatsapp)
6 अप्रैल 2024
गुरु जन्म दिवस ऑनलाइन शिविर
🌹 *निखिल अमृत महोत्सव* 🌹
13 मार्च 2024
6 मार्च 2024
28 फ़रवरी 2024
21 फ़रवरी 2024
14 फ़रवरी 2024
10 फ़रवरी 2024
माघ गुप्त नवरात्रि 2024 : देवी साधनायें करने का विशेष मुहूर्त
माघ गुप्त नवरात्रि 2024 : देवी साधनायें करने का विशेष मुहूर्त
इस वर्ष माघ गुप्त नवरात्रि 10 फरवरी से 18 फरवरी 2024 तक है ।.
इस अवसर पर कुछ मंत्र तथा विधियाँ जो गृहस्थ आसानी से कर सकें वह इस धारावाहिक " देवी साधनायें" के माध्यम से प्रस्तुत है ।.
यथासंभव विधियों को सरल रखा गया है ताकि सामान्य गृहस्थ भी इन साधनाओं को कर सकें, ।
पूर्ण शास्त्रीय विधि विधान से करने के इच्छुक साधक/ पाठक अपने गुरुदेव से प्राप्त करें या किसी प्रामाणिक ग्रंथ से विधि देख लें ।
यदि आप गृहस्थ में रहकर सात्विक विधियों से साधना करने के इच्छुक हैं तो आप गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता डा साधना सिंह जी से भोपाल जाकर दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं और अपनी समस्याओं के अनुसार मंत्र प्राप्त करके उसके जाप से अनुकूलता प्राप्त कर सकते हैं .
साधना सिद्धि विज्ञान
जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे. के. रोड , भोपाल [म.प्र.]
दूरभाष : (0755)
4269368,4283681,4221116
वेबसाइट:-
www.namobaglamaa.org
यूट्यूब चेनल :-
https://www.youtube.co/@MahavidhyaSadhakPariwar
7 फ़रवरी 2024
4 दिसंबर 2023
4 नवंबर 2023
ऑन लाइन दीपावली महालक्ष्मी पूजन एवं दीक्षा
ऑन लाइन दीपावली महालक्ष्मी पूजन एवं दीक्षा
12/11/2023
समय - दोपहर 3 बजे
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दीपावली महालक्ष्मी साधना का सिद्ध मुहूर्त होता है । इस अवसर पर की गयी महालक्ष्मी की साधनाएं विशेष आर्थिक अनुकूलता प्रदान करने वाली मानी जाती हैं । दीपावली के अवसर पर महालक्ष्मी से संबन्धित विशेष दीक्षाएं किसी सिद्ध गुरु से प्राप्त करके अगर आप महालक्ष्मी मंत्र का जाप करें तो आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता ही है ।
गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी एवं गुरुमाता साधना जी के द्वारा इस दीपावली के अवसर पर ऑनलाइन विशेष अष्टलक्ष्मी पूजन कराया जाएगा और महालक्ष्मी दीक्षा प्रदान की जाएगी । इस ऑनलाइन शिविर मे "Zoom App" के द्वारा आप अपने मोबाइल से भाग ले सकते हैं ।
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ऑनलाइन शिविर की जानकारी और रजिस्ट्रेशन के लिए संपर्क करें :-
श्री प्रशांत पांडे - 8800458271
श्री मनोहर सरजाल मो. 9009160861, 9009544291, 9752944865
28 अक्तूबर 2023
चन्द्र ग्रहण में गुरु साधना
- चन्द्र ग्रहण में गुरु साधना करनी चाहिये.
- अप्सरा साधना, लक्ष्मी साधना के लिये यह सबसे श्रेष्ठ मुहुर्त होता है.
- सम्मोहन/वशीकरण साधना के लिये यह उपयुक्त समय होता है.
24 जुलाई 2023
श्री नीलकंठ स्तोत्र
श्री नीलकंठ स्तोत्र
संकल्प:(विनियोग ):-
ओम अस्य श्री नीलकंठ स्तोत्र-मन्त्रस्य ब्रह्म ऋषि अनुष्टुप छंद :नीलकंठो सदाशिवो देवता ब्रह्म्बीजम पार्वती शक्ति:शिव इति कीलकं मम काय जीव स्वरक्षनार्थे सर्वारिस्ट विनाशानार्थेचतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धिअर्थे भक्ति-मुक्ति सिद्धि अर्थे श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थे च जपे पाठे विनियोग:
स्तोत्र मंत्र :-
।। ओम नमो नीलकंठाय श्वेत शरीराय नमः ।
सर्पालंकृत भूषणाय नमः ।
भुजंग परिकराय नाग यग्नोपवीताय नमः ।
अनेक काल मृत्यु विनाशनाय नमः ।
युगयुगान्त काल प्रलय प्रचंडाय नमः ।
ज्वलंमुखाय नमः ।
दंष्ट्रा कराल घोर रुपाय नमः हुं हुं फट स्वाहा,
ज्वालामुख मंत्र करालाय नमः ।
प्रचंडार्क सह्स्त्रान्शु प्रचंडाय नमः ।
कर्पुरामोद परिमलांग सुगंधिताय नमः ।
इन्द्रनील महानील वज्र वैदूर्यमणि माणिक्य मुकुट भूषणाय नमः ।
श्री अघोरास्त्र मूल मन्त्रस्य नमः ।
ओम ह्रां स्फुर स्फुर ओम ह्रीं स्फुर स्फुर ओम ह्रूं स्फुर स्फुर अघोर घोरतरस्य नमः ।
रथ रथ तत्र तत्र चट चट कह कह मद मद मदन दहनाय नमः ।
श्री अघोरास्त्र मूल मन्त्राय नमः ।
ज्वलन मरणभय क्षयं हूं फट स्वाहा ।
अनंत घोर ज्वर मरण भय कुष्ठ व्याधि विनाशनाय नमः ।
डाकिनी शाकिनी ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बन्धनाय नमः ।
अपर पारभुत वेताल कुष्मांड सर्वग्रह विनाशनाय नमः ।
यन्त्र कोष्ठ करालाय नमः ।
सर्वापद विच्छेदनाय नमः हूं हूं फट स्वाहा ।
आत्म मंत्र सुरक्षणाय नमः ।
ओम ह्रां ह्रीं ह्रूं नमो भुत डामर ज्वाला वश भूतानां द्वादश भूतानां त्रयोदश भूतानां पंचदश डाकिनीना हन् हन् दह दह नाशय नाशय एकाहिक द्याहिक चतुराहिक पंच्वाहिक व्याप्ताय नमः ।
आपादंत सन्निपात वातादि हिक्का कफादी कास्श्वासादिक दह दह छिन्दि छिन्दि,
श्री महादेव निर्मित स्तम्भन मोहन वश्यआकर्षण उच्चाटन कीलन उद्दासन इति षटकर्म विनाशनाय नमः ।
अनंत वासुकी तक्षक कर्कोटक शंखपाल विजय पद्म महापद्म एलापत्र नाना नागानां कुलकादी विषं छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि प्रवेशय प्रवेशय शीघ्रं शीघ्रं हूं हूं फट स्वाहा ।।
वातज्वर मरणभय छिन्दि छिन्दि हन् हन्: ,
भुतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर रात्रिज्वर शीतज्वर सन्निपातज्वर ,
ग्रहज्वर विषमज्वर कुमारज्वर तापज्वर ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर ,
महेशज्वर आवश्यकज्वर कामाग्निविषय ज्वर मरीची- ज्वारादी प्रबल दंडधराय नमः ।
परमेश्वराय नमः ।
आवेशय आवेशय शीघ्रं शीघ्रं हूं हूं फट स्वाहा ।
चोर मृत्यु ग्रह व्यघ्रासर्पादी विषभय विनाशनाय नमः ।
मोहन मन्त्राणाम , पर विद्या छेदन मन्त्राणाम , ओम ह्रां ह्रीं ह्रूं कुली लीं लीं हूं क्ष कूं कूं हूं हूं फट स्वाहा,
नमो नीलकंठाय नमः ।
दक्षाध्वरहराय नमः ।
श्री नीलकंठाय नमः , ओम ।।
यह अत्यंत तीक्ष्ण तथा प्रचंड स्तोत्र है , इसलिए पाठ जब शुरू हो उन दिनों में एक कप गाय के दूध में आधा चम्मच गाय के घी को मिलकर रात्री मे सेवन करना चाहिए जिससे शरीर में बढ़ने वाली गर्मी पर काबू रख सके वर्ना गुदामार्ग से खून आने की संभावना हो सकती हैं ।
एक दिन मे इसका एक बार पाठ करें ।. एक दिन मे सामान्य गृहस्थों को ज्यादा से ज्यादा तीन पाठ करने चाहिए ।साधक तथा योगी इससे ज्यादा भी कर सकते हैं ।
इस मंत्र को शिव मंदिर में जाकर शिव जी का पंचोपचार पूजन करके करना श्रेष्ट है , यदि शिव मंदिर मे संभव न हो तो एकांत कक्ष मे या पूजा कक्ष मे भी कर सकते हैं । अपने सामने शिवलिंग या शिवचित्र या महामाया का चित्र या यंत्र रखके करें ।.
यह आप पूरे सावन मास मे कर सकते हैं ।
इसके अलावा भी आप किसी भी दिन इसे कर सकते हैं ।.
शिव कृपा , तंत्र बाधा निवारण , सर्वविध रक्षा प्रदायक तथा रोगनाशन करने वाला स्तोत्र है ।
21 जुलाई 2023
चमत्कारी फल दायक : गौरी शंकर रुद्राक्ष
चमत्कारी फल दायक : गौरी शंकर रुद्राक्ष
गौरीशंकर रुद्राक्ष मे रुद्राक्ष के दो दाने प्रकृतिक रूप से जुड़े हुये होते हैं । यह सामान्य रुद्राक्ष से महंगा होता है और आंवले के बराबर के दाने लगभग ग्यारह बारह हजार रुपए के आसपास मिलते हैं । इसके छोटे दाने कम कीमत मे भी उपलब्ध होते हैं । आप अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार इसे पहन सकते हैं ।
गौरी शंकर रुद्राक्ष पहनने के लाभ :-
अकाल मृत्यु नहीं होती है ।
आरोग्य प्रदान करता है ।
उच्च श्रेणी की परीक्षा के स्टूडेंट के लिए बहुत कारगर होता है । जो नौकरी के लिए विशेष एग्जाम मे बैठते हैं उनके लिए भी गौरीशंकर रुद्राक्ष बहुत अच्छा काम करता है ।
वैवाहिक जीवन मे जो पति-पत्नी के बीच की प्रॉब्लम होती है या पुरुषों में जो कमजोरी आती है उसके लिए भी सिद्ध गौरी शंकर रुद्राक्ष काम करता है । अगर पति पत्नी दोनों गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करते हैं तो पति पत्नी के संबंध बहुत मधुर रहते है ।
गौरी शंकर रुद्राक्ष, पहने वाले व्यक्ति को सदा मुकदमों,कोर्ट कचहरी से, विवादों से बचा लेता है ।
मानसिक रोग, मिर्गी के दौरे पड़ना, बुरे स्वप्न देखना, बेवजह गुस्सा आना, स्त्रियों में अजीब सा व्यवहार, हर वक्त एक अंजाना डर बैठा रहना, बहुत ज्यादा सोचते रहना आदि समस्याओं मे गौरी शंकर रुद्राक्ष जबर्दस्त अनुकूलता प्रदान करता है ।
आध्यात्मिक साधकों के लिए यह साधना की सफलता मे सहायक होता है । साधना और साधक के बीच में सेतु के रूप मे गौरी शंकर रुद्राक्ष बहुत काम आता है । गौरीशंकर रुद्राक्ष पहनकर मंत्र जाप करने से जल्दी अनुभव और अनुकूलता मिलती है ।
यदि आप मेरे गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी द्वारा विशेष रूप से अभिमंत्रित किए गए गौरीशंकर रुद्राक्ष प्राप्त करना चाहते हों तो आप नीचे लिखे नंबर पर उनके शिष्य मुकेश जी से संपर्क कर सकते हैं :-
श्री मुकेश,
निखिलधाम,भोपाल
99266-70726
15 जुलाई 2023
दक्षिणामूर्ति शिव
दक्षिणामूर्ति शिव
दक्षिणामूर्ति शिव भगवान शिव का सबसे तेजस्वी स्वरूप है । यह उनका आदि गुरु स्वरूप है । इस रूप की साधना सात्विक भाव वाले सात्विक मनोकामना वाले तथा ज्ञानाकांक्षी साधकों को करनी चाहिये ।
13 जुलाई 2023
तांत्रोक्त गुरु पूजन
तांत्रोक्त गुरु पूजन
तंत्रोक्त गुरु पूजन की विधि प्रस्तुत है ।
जिसके माध्यम से आप अपने सदगुरुदेव का पूजन कर सकते हैं क्योंकि मेरे गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ( डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ) हैं इसलिए गुरुदेव जी के स्थान पर में उनका नाम ले रहा हूं आप अपने गुरु का नाम उनकी जगह पर ले सकते हैं ।
इस पूजन के लिए स्नानादि करके, पीले या सफ़ेद आसन पर पूर्वाभिमुखी होकर बैठें । लकड़ी की चौकी या बाजोट पर पीला कपड़ा बिछा कर उसपर पंचामृत या जल से स्नान कराके गुरु चित्र यंत्र या शिवलिंग जो भी आपके पास उपलब्ध हो उसे रख लें । अब पूजन प्रारंभ करें।
पवित्रीकरण
किसी भी कार्य को करने के पहले हम अपने आप को साफ सुथरा करते हैं ठीक वैसे ही पूजन करने से पहले भी अपने आप को पवित्र किया जाता है इसे पवित्रीकरण कहते हैं इसमें अपने ऊपर बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ की उंगलियों से छिड़कें या फूल या चम्मच जो भी आप इस्तेमाल करना चाहते हो उसके द्वारा अपने ऊपर थोड़ा सा जल छिड़क लें ।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
आचमन
आंतरिक शुद्धि के लिए निम्न मंत्रों को पढ़ आचमनी से तीन बार जल पियें -
ॐ आत्म तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।
ॐ ज्ञान तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।
ॐ विद्या तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।
सूर्य पूजन
भगवान सूर्य इस सृष्टि के संचालन करता है और उन्हीं के माध्यम से हम सभी का जीवन गतिशील होता है इसलिए उनकी पूजा अनिवार्य है ।
कुंकुम और पुष्प से सूर्य पूजन करें -
ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।
हिरण्येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।
ॐ पश्येन शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं ।जीवेम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात ।।
ध्यान
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम: ॥
ध्यान मूलं गुरु: मूर्ति पूजा मूलं गुरो पदं ।
मंत्र मूलं गुरुर्वाक्य मोक्ष मूलं गुरुकृपा ॥
आवाहन
ॐ स्वरुप निरूपण हेतवे श्री निखिलेश्वरानन्दाय गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।
ॐ स्वच्छ प्रकाश विमर्श हेतवे श्री सच्चिदानंद परम गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।
ॐ स्वात्माराम पिंजर विलीन तेजसे श्री ब्रह्मणे पारमेष्ठि गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।
षट चक्र स्थापन --
गुरुदेव को अपने षट्चक्रों में स्थापित करें -
श्री शिवानन्दनाथ पराशक्त्यम्बा मूलाधार चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री सदाशिवानन्दनाथ चिच्छक्त्यम्बा स्वाधिष्ठान चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री ईश्वरानन्दनाथ आनंद शक्त्यम्बा मणिपुर चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री रुद्रदेवानन्दनाथ इच्छा शक्त्यम्बा अनाहत चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री विष्णुदेवानन्दनाथ ज्ञान शक्त्यम्बा विशुद्ध चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री ब्रह्मदेवानन्दनाथ क्रिया शक्त्यम्बा सहस्त्रार चक्रे स्थापयामि नमः ।
ॐ श्री उन्मनाकाशानन्दनाथ – जलं समर्पयामि ।
ॐ श्री समनाकाशानन्दनाथ – गंगाजल स्नानं समर्पयामि ।
ॐ श्री व्यापकानन्दनाथ – सिद्धयोगा जलं समर्पयामि ।
ॐ श्री शक्त्याकाशानन्दनाथ – चन्दनं समर्पयामि ।
ॐ श्री ध्वन्याकाशानन्दनाथ – कुंकुमं समर्पयामि ।
ॐ श्री ध्वनिमात्रकाशानन्दनाथ – केशरं समर्पयामि ।
ॐ श्री अनाहताकाशानन्दनाथ – अष्टगंधं समर्पयामि ।
ॐ श्री विन्द्वाकाशानन्दनाथ – अक्षतं समर्पयामि ।
ॐ श्री द्वन्द्वाकाशानन्दनाथ – सर्वोपचारम समर्पयामि ।
दीपम
सिद्ध शक्तियों को दीप दिखाएँ
श्री महादर्पनाम्बा सिद्ध ज्योतिं समर्पयामि ।
श्री सुन्दर्यम्बा सिद्ध प्रकाशम् समर्पयामि ।
श्री करालाम्बिका सिद्ध दीपं समर्पयामि ।
श्री त्रिबाणाम्बा सिद्ध ज्ञान दीपं समर्पयामि ।
श्री भीमाम्बा सिद्ध ह्रदय दीपं समर्पयामि ।
श्री कराल्याम्बा सिद्ध सिद्ध दीपं समर्पयामि ।
श्री खराननाम्बा सिद्ध तिमिरनाश दीपं समर्पयामि ।
श्री विधीशालीनाम्बा पूर्ण दीपं समर्पयामि ।
नीराजन --
पात्र में जल, कुंकुम, अक्षत और पुष्प लेकर गुरु चरणों मे समर्पित करें -
श्री सोममण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
श्री सूर्यमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
श्री अग्निमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
श्री ज्ञानमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
श्री ब्रह्ममण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
पञ्च पंचिका
अपने दोनों हाथों में पुष्प लेकर , दोनों हाथों को भिक्षापात्र के समान जोड़कर, निम्न पञ्च पंचिकाओं का उच्चारण करते हुए इन दिव्य महाविद्याओं की प्राप्ति हेतु गुरुदेव से निवेदन करें -
श्री विद्या लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री एकाकार लक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री महालक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री त्रिशक्तिलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री सर्वसाम्राज्यलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री विद्या कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री परज्योति कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री परिनिष्कल शाम्भवी कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री अजपा कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री मातृका कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री विद्या कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री त्वरिता कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री पारिजातेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री त्रिपुटा कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री पञ्च बाणेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री विद्या कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री अमृत पीठेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री सुधांशु कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री अमृतेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री अन्नपूर्णा कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री विद्या रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री सिद्धलक्ष्मी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री मातंगेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री भुवनेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री वाराही रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री मन्मालिनी मंत्र
अंत में तीन बार श्री मन्मालिनी का उच्चारण करना चाहिए जिससे गुरुदेव की शक्ति, तेज और सम्पूर्ण साधनाओं की प्राप्ति हो सके । इसके द्वारा सभी अक्षरों अर्थात स्वर व्यंजनों का पूजन हो जाता है जिससे मंत्र बनते हैं :-
ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं लृं ल्रृं एं ऐँ ओं औं अं अः ।
कं खं गं घं ङं ।
चं छं जं झं ञं ।
टं ठं डं ढं णं ।
तं थं दं धं नं ।
पं फं बं भं मं ।
यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं हंसः सोऽहं गुरुदेवाय नमः ।
गुरु मंत्र जाप
इसके बाद गुरु मंत्र का यथा शक्ति जाप करें ।
प्रार्थना --
लोकवीरं महापूज्यं सर्वरक्षाकरं विभुम् ।
शिष्य हृदयानन्दं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।
त्रिपूज्यं विश्व वन्द्यं च विष्णुशम्भो प्रियं सुतं ।
क्षिप्र प्रसाद निरतं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।
मत्त मातंग गमनं कारुण्यामृत पूजितं ।
सर्व विघ्न हरं देवं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।
अस्मत् कुलेश्वरं देवं सर्व सौभाग्यदायकं ।
अस्मादिष्ट प्रदातारं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।
यस्य धन्वन्तरिर्माता पिता रुद्रोऽभिषक् तमः ।
तं शास्तारमहं वंदे महावैद्यं दयानिधिं ।।
समर्पण --
सम्पूर्ण पूजन गुरु के चरणों मे समर्पित करें :-
देवनाथ गुरौ स्वामिन देशिक स्वात्म नायक: ।
त्राहि त्राहि कृपा सिंधों , पूजा पूर्णताम कुरु ....
अनया पूजया श्री गुरु प्रीयंताम तदसद श्री सद्गुरु चरणार्पणमस्तु ॥
इतना कहकर गुरु चरणों मे जल छोड़ें ।
शांति
तीन बार जल छिडके...
ॐ शान्तिः । शान्तिः ।। शान्तिः ।।।
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-
12 जुलाई 2023
गुरु पूर्णिमा पर गुरुपूजन की सरल विधि
गुरु पूर्णिमा पर गुरुपूजन की सरल विधि
गुरु पूजन की एक सरल विधि प्रस्तुत है ।
जिसका उपयोग आप दैनिक पूजन में भी कर सकते हैं ।
सबसे पहले अपने सदगुरुदेव को हाथ जोडकर प्रणाम करे
ॐ गुं गुरुभ्यो नम:
गणेश भगवान का स्मरण करें तथा उन्हें प्रणाम करें
ॐ श्री गणेशाय नम:
सृष्टि की संचालनि शक्ति भगवती जगदंबा के 10 स्वरूपों को महाविद्या कहा जाता है । उन को हृदय से प्रणाम करें तथा पूजन की पूर्णता की हेतु अनुमति मांगें ।
ॐ ह्रीं दशमहाविद्याभ्यो नम:
गुरुदेव का ध्यान करे
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: ॥
ध्यानमूलं गुरो मूर्ति : पूजामूलं गुरो: पदं ।
मंत्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा ॥
गुरुकृपाहि केवलम ।
गुरुकृपाहि केवलम ।
गुरुकृपाहि केवलम ।
श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नम: ध्यानं समर्पयामि ।
अब ऐसी भावना करें कि गुरुदेव (अंडरलाइन वाले जगह पर अपने गुरु का नाम लें ) आपके हृदय कमल के ऊपर विराजमान हो ।
श्री सदगुरु स्वामी निखिलेश्वरानंद महाराज मम ह्रदय कमल मध्ये आवाहयामि स्थापयामि नम: ॥
सदगुरुदेव का मानसिक पंचोपचार पूजन करे और पूजन के बाद गुरुपादुका पंचक स्तोत्र का भी पाठ अवश्य करे ..
कई बार हमारे पास सामग्री उपलब्ध नहीं होती ऐसी स्थिति में मानसिक रूप से पूजन संपन्न किया जा सकता है इसके लिए विभिन्न प्रकार की मुद्राएं उंगलियों के माध्यम से प्रस्तुत की जाती हैं जिसको उस सामग्री के अर्पण के समान ही माना जाता है ।
मानसिक पूजन करते समय पंचतत्वो की मुद्राये प्रदर्शित करे और सामग्री से पूजन करते समय उचित सामग्री का उपयोग करे
अंगूठे और छोटी उंगली को स्पर्श कराकर कहें
ॐ " लं " पृथ्वी तत्वात्मकं गंधं समर्पयामि ॥
अंगूठे और पहली उंगली को स्पर्श कराकर कहें
ॐ " हं " आकाश तत्वात्मकं पुष्पम समर्पयामि ॥
अंगूठे और पहली उंगली को स्पर्श कराकर धूप मुद्रा दिखाकर मानसिक रूप से समर्पित करें
ॐ " यं " वायु तत्वात्मकं धूपं समर्पयामि ॥
दीपक उपलब्ध हो तो दीपक दिखाएं और ना हो तो मानसिक रूप से अंगूठे और बीच वाली उंगली को स्पर्श करके दीपक मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए ऐसा भाव रखें कि आप गुरुदेव को दीपक समर्पित कर रहे हैं ।
ॐ " रं " अग्नि तत्वात्मकं दीपं समर्पयामि ॥
प्रसाद हो तो उसे अर्पित करें और ना हो तो मानसिक रूप से प्रसाद या नैवेद्य अर्पित करने के लिए अंगूठे और अनामिका अर्थात तीसरी उंगली या रिंग फिंगर को स्पर्श करके वह मुद्रा गुरुदेव को दिखाते हुए मानसिक रूप से प्रसाद अर्पित करें ।
ॐ " वं " जल तत्वात्मकं नैवेद्यं समर्पयामि श्रीगुरवे नम:
अब सारी उंगलियों को जोड़कर गुरुदेव के चरणों में तांबूल या पान अर्पित करें ।
ॐ " सं " सर्व तत्वात्मकं तांबूलं समर्पयामि श्री गुरवे नम:
अब हाथ जोडकर गुरु पंक्ति का पूजन करे ।
इसमें नमः बोलकर आप सिर्फ हाथ जोड़कर नमस्कार कर सकते हैं....
या फिर चावल चढ़ा सकते हैं....
या पुष्प चढ़ा सकते हैं.....
या फिर जल चढ़ा सकते हैं ।
ॐ गुरुभ्यो नम: ।
ॐ परम गुरुभ्यो नम: ।
ॐ परात्पर गुरुभ्यो नम: ।
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम: ।
ॐ दिव्यौघ गुरुपंक्तये नम: ।
ॐ सिद्धौघ गुरुपंक्तये नम: ।
ॐ मानवौघ गुरुपंक्तये नम: ।
अब गुरुपादुका पंचक स्तोत्र का पाठ करे ..
गुरुपादुका पंचक स्तोत्र
ॐ नमो गुरुभ्यो गुरुपादुकाभ्यां
नम: परेभ्य: परपादुकाभ्यां
आचार्य सिद्धेश्वर पादुकाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! १ !!
ऐंकार ह्रींकार रहस्ययुक्त
श्रीं कार गूढार्थ महाविभूत्या
ॐकार मर्म प्रतिपादिनीभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! २ !!
होमाग्नि होत्राग्नि हविष्यहोतृ
होमादि सर्वाकृति भासमानं
यद ब्रह्म तद बोध वितारिणाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ३ !!
अनंत संसार समुद्रतार
नौकायिताभ्यां स्थिर भक्तिदाभ्यां
जाड्याब्धि संशोषण बाडवाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ४ !!
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां
विवेक वैराग्य निधिप्रदाभ्यां
बोधप्रदाभ्यां द्रुत मोक्षदाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ५ !!
अब एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर अर्घ्य दे या मानसिक स्तर पर ऐसा भाव करें कि आपने जल में चंदन मिलाया है और उसे गुरु चरणों में समर्पित कर रहे हैं ..
ॐ गुरुदेवाय विदमहे परम गुरवे धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात् ।
अब गुरुमंत्र का यथाशक्ती जाप करे
आप अपने गुरु के द्वारा प्राप्त मंत्र का जाप कर सकते हैं या फिर निम्नलिखित गुरु मंत्र का जाप कर सकते हैं ।
॥ ॐ गुरुभ्यो नमः ॥
अंत मे जप गुरुदेव को अर्पण करे
ॐ गुह्याति गुह्यगोप्तात्वं गृहाणास्मत कृतं जपं सिद्धिर्भवतु मे गुरुदेव त्वतप्रसादान्महेश्वर !!
अब एक आचमनी जल अर्पण करे , मन में भाव रखें कि हे गुरुदेव मैं यह पूजन आपके चरणों में समर्पित कर रहा हूं और आप मुझ पर कृपालु होकर अपना आशीर्वाद प्रदान करें ।
अनेन पूजनेन श्री गुरुदेव प्रीयंता मम !!
दोनों कान पकड़कर पूजन में हुई किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करते हुए कहे
क्षमस्व गुरुदेव ॥
क्षमस्व गुरुदेव ॥
क्षमस्व गुरुदेव ॥