सूर्य ग्रहण विशेष – व्यापार वृद्धि साधना
आवश्यक वस्तुएं :-
एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
सूर्य ग्रहण विशेष – व्यापार वृद्धि साधना
पूरे भारत में सबसे समृद्ध संप्रदाय है
सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र
दीपावली भगवती महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण मुहूर्त है. प्रत्येक गृहस्थ को इस अवसर पर देवी महालक्ष्मी का पूजन विधि विधान से संपन्न करना ही चाहिए क्योंकि गृहस्थ जीवन का आधार ही महालक्ष्मी हैं. महालक्ष्मी पूजन विविध प्रकार से किए जा सकते हैं लेकिन देवराज इंद्रकृत सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र अपने आप में अत्यंत ही प्रभावशाली तथा शीघ्र फलप्रदायक है. इस अवसर पर आप चाहें तो महालक्ष्मी के किसी भी मंत्र का जाप कर सकते हैं जिससे आपको अनुकूलता प्राप्त होगी
यह स्तोत्र लक्ष्मी जी के यंत्र चित्र या मूर्ति के सामने करना चाहिए.
पहले लघु पूजन करें. तदुपरांत स्तोत्र का पाठ करें.
महालक्ष्मी पूजनः-
श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः गंधम समर्पयामि । (इत्र कुंकुम चढायें)
श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः पुष्पम समर्पयामि । (फूल चढायें )
श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः धूपम समर्पयामि । (अगरबत्ती दिखायें)
श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः दीपम समर्पयामि । (दीपक दिखायें )
श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यम समर्पयामि । (प्रसाद चढायें )
क्षमतानुसार 11, 21,51 या 108 बार सहस्राक्षरी स्तोत्र मंत्र का पाठ करेंः-
(हाथ में जल लेकर)विनियोगः-
ऊँ अस्य श्री सर्व महाविद्या महारात्रि गोपनीय मंत्र रहस्याति रहस्यमयी पराशक्ति श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी सहस्राक्षरी सहस्र रूपिणि महाविद्याया श्री इंद्र ऋषिं गायत्रयादि नाना छंदांसि नवकोटि शक्तिरूपा श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी देवता श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थ जपे पाठे विनियोगः । (जल जमीन पर छोड़ दें )
अपने हाथ मे एक पुष्प रखें । एक पाठ पूरा हो जाने पर उसे देवी के चरणों मे चढ़ा दें और उनकी कृपा प्राप्ति की प्रार्थना करें ।.
स्तोत्र मंत्र :-
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं हसौं श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं सौः सौः ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं जय जय महालक्ष्मी, जगदाद्ये,विजये सुरासुर त्रिभुवन निदाने दयांकुरे सर्व तेजो रूपिणी विरंचि संस्थिते, विधि वरदे सच्चिदानंदे विष्णु देहावृते महामोहिनी नित्य वरदान तत्परे महासुधाब्धि वासिनी महातेजो धारिणी सर्वाधारे सर्वकारण कारिणे अचिंत्य रूपे इंद्रादि सकल निर्जर सेविते सामगान गायन परिपूर्णोदय कारिणी विजये जयंति अपराजिते सर्व सुंदरि रक्तांशुके सूर्य कोटि संकाशे चंद्र कोटि सुशीतले अग्निकोटि दहनशीले यम कोटि वहनशीले ऊँकार नाद बिंदु रूपिणी निगमागम भाग्यदायिनी त्रिदश राज्य दायिनी सर्व स्त्री रत्न स्वरूपिणी दिव्य देहिनि निर्गुणे सगुणे सदसद रूप धारिणी सुर वरदे भक्त त्राण तत्परे बहु वरदे सहस्राक्षरे अयुताक्षरे सप्त कोटि लक्ष्मी रूपिणी अनेक लक्षलक्ष स्वरूपे अनंत कोटि ब्रहमाण्ड नायिके चतुर्विंशति मुनिजन संस्थिते चतुर्दश भुवन भाव विकारिणे गगन वाहिनी नाना मंत्र राज विराजिते सकल सुंदरी गण सेविते चरणारविंद्र महात्रिपुर सुंदरी कामेश दायिते करूणा रस कल्लोलिनी कल्पवृक्षादि स्थिते चिंतामणि द्वय मध्यावस्थिते मणिमंदिरे निवासिनी विष्णु वक्षस्थल कारिणे अजिते अमले अनुपम चरिते मुक्तिक्षेत्राधिष्ठायिनी प्रसीद प्रसीद सर्व मनोरथान पूरय पूरय सर्वारिष्टान छेदय छेदय सर्वग्रह पीडा ज्वराग्र भय विध्वंसय विध्वंसय सर्व त्रिभुवन जातं वशय वशय मोक्ष मार्गाणि दर्शय दर्शय ज्ञानमार्ग प्रकाशय प्रकाशय अज्ञान तमो नाशय नाशय धनधान्यादि वृद्धिं कुरूकुरू सर्व कल्याणानि कल्पय कल्पय माम रक्ष रक्ष सर्वापदभ्यो निस्तारय निस्तारय वज्र शरीरं साधय साधय ह्रीं सहस्राक्षरी सिद्ध लक्ष्मी महाविद्यायै नमः ।
एकाक्षी नारियल
हर गृहस्थ व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि उसके पास धन का अभाव न रहे । धन की प्राप्ति के लिए प्रयास आवश्यक है । उसके साथ साथ यदि आप देवी लक्ष्मी की साधना या कुबेर की साधना जैसे उपाय करें तब भी आपके प्रयासों को जल्दी सफलता मिलती है ।
इसके अलावा कुछ तांत्रिक वस्तुएं भी ऐसी हैं जो मुश्किल से मिलती है । लेकिन उनको घर में रखने मात्र से ही लक्ष्मी प्राप्ति की संभावनाएं बढ़ जाती है ।
इनमें से कई चीजें बेहद दुर्लभ है और कुछ चीजें कठिन है मगर मिल जाती है वैसी ही एक वस्तु है एकाक्षी नारियल ।
सामान्य नारियल में दो आंखें और एक मुह होता है अर्थात कुल मिलाकर तीन काले बिंदु होते हैं ।
एकाक्षी नारियल में एक ही आंख होती है अर्थात उसमें कुल मिला कर दो काले बिंदु होते हैं ।
यह नारियल मुश्किल से मिलता है मगर मिलता है । ऐसा नारियल अगर आपको प्राप्त हो जाए तो उसे लाल कपड़े पर रखकर से धूप दीप दिखाएँ और उसी लाल कपड़े में बांधकर उस स्थान पर रख दें, जहां पर आप पैसे रखते हैं ।
जैसे तिजोरी या लॉकर । इससे लक्ष्मी प्राप्ति में सहयोग मिलता है ।
लक्ष्मी का तात्पर्य केवल धन के आगमन को ही माना जाता है । आप ध्यान दें तो यदि धन का जाना भी कम हो जाए अर्थात आप का खर्च कम हो जाए तो वह भी एक प्रकार से लक्ष्मी का आगमन ही है ।
कई परिवारों में अनावश्यक रूप से बीमारियों या इसी प्रकार की किसी अवांछित घटना के चलते धन का लगातार खर्च बढ़ता रहता है । ऐसी परिस्थितियों में भी एकाक्षी नारियल रखने या लक्ष्मी साधना करने से अनुकूलता मिल सकती है और बेवजह के खर्चों में कमी आने से आर्थिक स्थिति बेहतर हो सकती है ......
सिद्ध मुहूर्त :-
अक्षय तृतीया
शरद पूर्णिमा
मकर संक्रांति
अक्षय तृतीया का पर्व पूरे वर्ष में एक बार आता है । ज्योतिषीय व्याख्या के अनुसार यह पूरे वर्ष का ऐसा दिन होता है जिसमें किसी क्षण का भी क्षय या कमी नहीं होती है अर्थात यह पूर्णता का प्रतीक है या दूसरे शब्दों में कहें तो एक ऐसी स्थिति का प्रतीक है जिसमें कमी की गुंजाइश नहीं रहती है ।
दीपावली के अलावा लक्ष्मी साधना के लिए यह तीनों दिन अत्यंत ही सिद्ध मुहूर्त है ।
इस दिन लक्ष्मी साधना करने से धन-धान्य और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है ..
ऑन लाइन दीपावली महालक्ष्मी पूजन एवं दीक्षा
12/11/2023
समय - दोपहर 3 बजे
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दीपावली महालक्ष्मी साधना का सिद्ध मुहूर्त होता है । इस अवसर पर की गयी महालक्ष्मी की साधनाएं विशेष आर्थिक अनुकूलता प्रदान करने वाली मानी जाती हैं । दीपावली के अवसर पर महालक्ष्मी से संबन्धित विशेष दीक्षाएं किसी सिद्ध गुरु से प्राप्त करके अगर आप महालक्ष्मी मंत्र का जाप करें तो आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता ही है ।
गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी एवं गुरुमाता साधना जी के द्वारा इस दीपावली के अवसर पर ऑनलाइन विशेष अष्टलक्ष्मी पूजन कराया जाएगा और महालक्ष्मी दीक्षा प्रदान की जाएगी । इस ऑनलाइन शिविर मे "Zoom App" के द्वारा आप अपने मोबाइल से भाग ले सकते हैं ।
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ऑनलाइन शिविर की जानकारी और रजिस्ट्रेशन के लिए संपर्क करें :-
श्री प्रशांत पांडे - 8800458271
श्री मनोहर सरजाल मो. 9009160861, 9009544291, 9752944865
शरद पूर्णिमा पर आर्थिक उन्नति के लिए श्री विद्या साधना शिविर
हम सब गृहस्थ हैं । गृहस्थ व्यक्ति संसार छोडकर नहीं बैठा है । उसकी पत्नी है , पुत्र है , पुत्री है, माता है , पिता है , भाई है, बहन है , बंधु बांधव हैं । कुल मिलाकर उसके आसपास संबंधों का एक लंबा चौड़ा संसार है । जिसमें उसे कई प्रकार से धन की, लक्ष्मी की, आवश्यकता पड़ती है । अगर व्यवसाय है, तो वह चाहता है कि उसके पास ज्यादा ग्राहक आयें । उसका सामान ज्यादा बिके । उसे ज्यादा फायदा हो .... ऐसा चाहने में कुछ गलत भी नहीं है ।
अगर युवा है तो वह विविध प्रकार के भोग की इच्छा रखता है । विवाहित है, तो पत्नी के साथ भोग की इच्छा रखता है ; अगर आप उसे ब्रह्मचर्य रखने के लिए कहें तो वह उसके लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है ।
ऐसी स्थिति में आध्यात्मिक उन्नति की इच्छा रखने वाला व्यक्ति अपनी भोग की इच्छा की वजह से थोड़ा झिझक जाता है ; लेकिन सनातन धर्म में विशेष रूप से तंत्र साधनाओं में कई ऐसी विद्याएं हैं,जो भोग भी प्रदान करती है और आध्यात्मिक शक्तियां भी प्रदान करती है ।
इनमें सबसे प्रमुख है श्री विद्या या महाविद्या षोडशी त्रिपुर सुंदरी !
इनके विषय मे कहा गया है कि :-
श्री सुंदरी साधन तत्पराणाम् ,
भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव
अर्थात जो साधक श्री विद्या त्रिपुरसुंदरी साधना के लिए प्रयासरत होता है, उसके एक हाथ में सभी प्रकार के भोग होते हैं, तथा दूसरे हाथ में पूर्ण मोक्ष होता है । ऐसा साधक समस्त प्रकार के भोगों का उपभोग करता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है । ऐसा भी कहा जा सकता है कि यह एकमात्र ऐसी साधना है जो एक साथ भोग तथा मोक्ष दोनों ही प्रदान करती है ।
श्री विद्या की साधना करने के इच्छुक गृहस्थ साधकों के लिए 27-28 अक्तूबर 2023 को निखिलधाम, भोपाल मे श्री विद्या से संबन्धित शिविर का आयोजन गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी और गुरुमाता डॉ साधना सिंह जी के सानिध्य मे किया जा रहा है ।
आप 26 और 27 अक्तूबर 2023 को गुरुदेव और गुरुमाता से व्यक्तिगत रूप से मिलकर अपनी समस्याओं से संबन्धित दीक्षा और मंत्र प्राप्त कर सकते हैं ।
28 अक्तूबर 2023 को गुरुदेव और गुरुमाता के द्वारा श्री विद्या का विशेष पूजन सम्पन्न होगा जो रात 9 बजे तक चलेगा । इस दौरान लक्ष्मी के विशिष्ट स्वरूपों और श्री विद्या का विशेष पूजन संपन्न करवाया जाएगा जो आर्थिक अनुकूलता के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है ।
कई पाठकों ने आर्थिक तंगी, व्यापार न चलने जैसे विषयों पर साधनात्मक समाधान की आवश्यकता बताई थी । मेरा निजी अनुभव है कि श्री विद्या से संबन्धित दीक्षा और मंत्र जाप आर्थिक उन्नति प्रदान करता ही है, चाहे आप किसी भी क्षेत्र मे हों ।
शरद पूर्णिमा ऐसे भी लक्ष्मी और श्री साधनाओं का सिद्ध मुहूर्त है और इस बार तो चंद्रग्रहण से युक्त भी है इसलिए इसका प्रभाव हजार गुना बढ़ जाएगा ।
इस अवसर का आप भी लाभ उठा सकते हैं और आर्थिक अनुकूलता के लिए श्री विद्या की दीक्षा और मंत्र प्राप्त कर सकते हैं ।
संपर्क करें :-
साधना सिद्धि विज्ञान कार्यालय
जैस्मिन – 429,
न्यू मिनाल रेसिडेंसी,
जे.के.रोड, भोपाल,म.प्र.
फोन- 0755-4269368
आप महाविद्या साधक परिवार के वीडियो यूट्यूब पर देख कर साधनात्मक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं ।
https://www.youtube.com/c/mahavidhyasadhakpariwar
किसी भी प्रकार की अन्य जानकारी के लिए क्लिक करें :-
http://namobaglamaa.org/
श्री लक्ष्म्यष्टोत्तरशतनाम या महालक्ष्मी के 108 नाम
सबसे पहले महालक्ष्मी जी को हाथ जोड़कर ध्यान करलें :-
सरसिज निलये सरोज हस्ते धवलतरांशुक गन्ध माल्य शोभे ।
भगवति हरि वल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥
हिन्दी भावार्थ - हे महामाया महालक्ष्मी ! आप कमल फूलो से भरे हुए वन में निवास करनेवाली हो, आपके हाथों में सुंदर कमल है। आपके वस्त्र अत्यन्त उज्ज्वल हैं । आपके दिव्य देह पर अत्यंत मनोहर गन्ध और सुंदर सुंदर मालाएँ डाली हुई हैं । हे भगवान श्री हरी की प्रिया आपका स्वरूप अत्यंत मनमोहक है । आपकी कृपा से त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्राप्त हो सकता है आप मुझपर प्रसन्न होकर कृपा करें ।
ऐसा ध्यान करेंगे ।
इसके बाद अपने पूजा स्थान/दुकान/ एकांत कक्ष मे अपने सामने लक्ष्मी चित्र/ यंत्र/ श्रीयंत्र/ चाँदी सिक्का/ लक्ष्मी मूर्ति (जो आपके पास उपलब्ध हो ) रखकर भगवती लक्ष्मी के 108 नामों का उच्चारण करें और हर बार नम: के साथ फूल /कुमकुम/ चावल/ अष्टगंध चढ़ाएं ।
ॐ श्रीं अदित्यै नमः ।
ॐ श्रीं अनघायै नमः ।
ॐ श्रीं अनुग्रहप्रदायै नमः ।
ॐ श्रीं अमृतायै नमः ।
ॐ श्रीं अशोकायै नमः ।
ॐ श्रीं आह्लादजनन्यै नमः ।
ॐ श्रीं इन्दिरायै नमः ।
ॐ श्रीं इन्दुशीतलायै नमः ।
ॐ श्रीं उदाराङ्गायै नमः ।
ॐ श्रीं कमलायै नमः ।
ॐ श्रीं करुणायै नमः ।
ॐ श्रीं कान्तायै नमः ।
ॐ श्रीं कामाक्ष्यै नमः ।
ॐ श्रीं क्रोधसम्भवायै नमः ।
ॐ श्रीं चतुर्भुजायै नमः ।
ॐ श्रीं चन्द्ररूपायै नमः ।
ॐ श्रीं चन्द्रवदनायै नमः ।
ॐ श्रीं चन्द्रसहोदर्यै नमः ।
ॐ श्रीं चन्द्रायै नमः ।
ॐ श्रीं जयायै नमः ।
ॐ श्रीं तुष्टयै नमः ।
ॐ श्रीं त्रिकालज्ञानसम्पन्नायै नमः ।
ॐ श्रीं दारिद्र्यध्वंसिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं दारिद्र्यनाशिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं दित्यै नमः ।
ॐ श्रीं दीप्तायै नमः ।
ॐ श्रीं देव्यै नमः ।
ॐ श्रीं धनधान्यकर्यै नमः ।
ॐ श्रीं धन्यायै नमः ।
ॐ श्रीं धर्मनिलयायै नमः ।
ॐ श्रीं नवदुर्गायै नमः ।
ॐ श्रीं नारायणसमाश्रितायै नमः ।
ॐ श्रीं नित्यपुष्टायै नमः ।
ॐ श्रीं नृपवेश्मगतानन्दायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मगन्धिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मनाभप्रियायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मप्रियायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्ममालाधरायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्ममुख्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मसुन्दर्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्महस्तायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्माक्ष्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मालयायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मोद्भवायै नमः ।
ॐ श्रीं परमात्मिकायै नमः ।
ॐ श्रीं पुण्यगन्धायै नमः ।
ॐ श्रीं पुष्टयै नमः ।
ॐ श्रीं प्रकृत्यै नमः ।
ॐ श्रीं प्रभायै नमः ।
ॐ श्रीं प्रसन्नाक्ष्यै नमः ।
ॐ श्रीं प्रसादाभिमुख्यै नमः ।
ॐ श्रीं प्रीतिपुष्करिण्यै नमः ।
ॐ श्रीं बिल्वनिलयायै नमः ।
ॐ श्रीं बुद्धये नमः ।
ॐ श्रीं ब्रह्माविष्णुशिवात्मिकायै नमः ।
ॐ श्रीं भास्कर्यै नमः ।
ॐ श्रीं भुवनेश्वर्यै नमः ।
ॐ श्रीं मङ्गळा देव्यै नमः ।
ॐ श्रीं महाकाल्यै नमः ।
ॐ श्रीं महादीप्तायै नमः ।
ॐ श्रीं महादेव्यै नमः ।
ॐ श्रीं यशस्विन्यै नमः ।
ॐ श्रीं रमायै नमः ।
ॐ श्रीं लक्ष्म्यै नमः ।
ॐ श्रीं लोकमात्रे नमः ।
ॐ श्रीं लोकशोकविनाशिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं वरलक्ष्म्यै नमः ।
ॐ श्रीं वरारोहायै नमः ।
ॐ श्रीं वसुधायै नमः ।
ॐ श्रीं वसुधारिण्यै नमः ।
ॐ श्रीं वसुन्धरायै नमः ।
ॐ श्रीं वसुप्रदायै नमः ।
ॐ श्रीं वाचे नमः ।
ॐ श्रीं विकृत्यै नमः ।
ॐ श्रीं विद्यायै नमः ।
ॐ श्रीं विभावर्यै नमः ।
ॐ श्रीं विभूत्यै नमः ।
ॐ श्रीं विमलायै नमः ।
ॐ श्रीं विश्वजनन्यै नमः ।
ॐ श्रीं विष्णुपत्न्यै नमः ।
ॐ श्रीं विष्णुवक्षस्स्थलस्थितायै नमः ।
ॐ श्रीं शान्तायै नमः ।
ॐ श्रीं शिवकर्यै नमः ।
ॐ श्रीं शिवायै नमः ।
ॐ श्रीं शुक्लमाल्याम्बरायै नमः ।
ॐ श्रीं शुचये नमः ।
ॐ श्रीं शुभप्रदाये नमः ।
ॐ श्रीं शुभायै नमः ।
ॐ श्रीं श्रद्धायै नमः ।
ॐ श्रीं श्रियै नमः ।
ॐ श्रीं सत्यै नमः ।
ॐ श्रीं समुद्रतनयायै नमः ।
ॐ श्रीं सर्वभूतहितप्रदायै नमः ।
ॐ श्रीं सर्वोपद्रव वारिण्यै नमः ।
ॐ श्रीं सिद्धये नमः ।
ॐ श्रीं सुधायै नमः ।
ॐ श्रीं सुप्रसन्नायै नमः ।
ॐ श्रीं सुरभ्यै नमः ।
ॐ श्रीं स्त्रैणसौम्यायै नमः ।
ॐ श्रीं स्वधायै नमः ।
ॐ श्रीं स्वाहायै नमः ।
ॐ श्रीं हरिण्यै नमः ।
ॐ श्रीं हरिवल्लभायै नमः ।
ॐ श्रीं हिरण्मय्यै नमः ।
ॐ श्रीं हिरण्यप्राकारायै नमः ।
ॐ श्रीं हेममालिन्यै नमः ।
अन्त मे हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना कर लें ।
यह पूजन आप रात्री मे कर सकते हैं । अगर ऐसा संभव ना हो तो आप दिन में किसी भी समय इसे कर सकते हैं ।
अगर आपने श्री यंत्र के ऊपर पूजन किया है तो पूजा करने के बाद उस यंत्र को आप पूजा स्थान में या अपने पैसा रखने वाले गल्ले में रख सकते हैं ।
श्री लक्ष्म्यष्टोत्तरशतनाम या महालक्ष्मी के 108 नाम
सबसे पहले महालक्ष्मी जी को हाथ जोड़कर ध्यान करलें :-
सरसिज निलये सरोज हस्ते धवलतरांशुक गन्ध माल्य शोभे ।
भगवति हरि वल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥
हिन्दी भावार्थ - हे महामाया महालक्ष्मी ! आप कमल फूलो से भरे हुए वन में निवास करनेवाली हो, आपके हाथों में सुंदर कमल है। आपके वस्त्र अत्यन्त उज्ज्वल हैं । आपके दिव्य देह पर अत्यंत मनोहर गन्ध और सुंदर सुंदर मालाएँ डाली हुई हैं । हे भगवान श्री हरी की प्रिया आपका स्वरूप अत्यंत मनमोहक है । आपकी कृपा से त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्राप्त हो सकता है आप मुझपर प्रसन्न होकर कृपा करें ।
ऐसा ध्यान करेंगे ।
इसके बाद अपने पूजा स्थान/दुकान/ एकांत कक्ष मे अपने सामने लक्ष्मी चित्र/ यंत्र/ श्रीयंत्र/ चाँदी सिक्का/ लक्ष्मी मूर्ति (जो आपके पास उपलब्ध हो ) रखकर भगवती लक्ष्मी के 108 नामों का उच्चारण करें और हर बार नम: के साथ फूल /कुमकुम/ चावल/ अष्टगंध चढ़ाएं ।
ॐ श्रीं अदित्यै नमः ।
ॐ श्रीं अनघायै नमः ।
ॐ श्रीं अनुग्रहप्रदायै नमः ।
ॐ श्रीं अमृतायै नमः ।
ॐ श्रीं अशोकायै नमः ।
ॐ श्रीं आह्लादजनन्यै नमः ।
ॐ श्रीं इन्दिरायै नमः ।
ॐ श्रीं इन्दुशीतलायै नमः ।
ॐ श्रीं उदाराङ्गायै नमः ।
ॐ श्रीं कमलायै नमः ।
ॐ श्रीं करुणायै नमः ।
ॐ श्रीं कान्तायै नमः ।
ॐ श्रीं कामाक्ष्यै नमः ।
ॐ श्रीं क्रोधसम्भवायै नमः ।
ॐ श्रीं चतुर्भुजायै नमः ।
ॐ श्रीं चन्द्ररूपायै नमः ।
ॐ श्रीं चन्द्रवदनायै नमः ।
ॐ श्रीं चन्द्रसहोदर्यै नमः ।
ॐ श्रीं चन्द्रायै नमः ।
ॐ श्रीं जयायै नमः ।
ॐ श्रीं तुष्टयै नमः ।
ॐ श्रीं त्रिकालज्ञानसम्पन्नायै नमः ।
ॐ श्रीं दारिद्र्यध्वंसिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं दारिद्र्यनाशिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं दित्यै नमः ।
ॐ श्रीं दीप्तायै नमः ।
ॐ श्रीं देव्यै नमः ।
ॐ श्रीं धनधान्यकर्यै नमः ।
ॐ श्रीं धन्यायै नमः ।
ॐ श्रीं धर्मनिलयायै नमः ।
ॐ श्रीं नवदुर्गायै नमः ।
ॐ श्रीं नारायणसमाश्रितायै नमः ।
ॐ श्रीं नित्यपुष्टायै नमः ।
ॐ श्रीं नृपवेश्मगतानन्दायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मगन्धिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मनाभप्रियायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मप्रियायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्ममालाधरायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्ममुख्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मसुन्दर्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्महस्तायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्माक्ष्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मालयायै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं पद्मोद्भवायै नमः ।
ॐ श्रीं परमात्मिकायै नमः ।
ॐ श्रीं पुण्यगन्धायै नमः ।
ॐ श्रीं पुष्टयै नमः ।
ॐ श्रीं प्रकृत्यै नमः ।
ॐ श्रीं प्रभायै नमः ।
ॐ श्रीं प्रसन्नाक्ष्यै नमः ।
ॐ श्रीं प्रसादाभिमुख्यै नमः ।
ॐ श्रीं प्रीतिपुष्करिण्यै नमः ।
ॐ श्रीं बिल्वनिलयायै नमः ।
ॐ श्रीं बुद्धये नमः ।
ॐ श्रीं ब्रह्माविष्णुशिवात्मिकायै नमः ।
ॐ श्रीं भास्कर्यै नमः ।
ॐ श्रीं भुवनेश्वर्यै नमः ।
ॐ श्रीं मङ्गळा देव्यै नमः ।
ॐ श्रीं महाकाल्यै नमः ।
ॐ श्रीं महादीप्तायै नमः ।
ॐ श्रीं महादेव्यै नमः ।
ॐ श्रीं यशस्विन्यै नमः ।
ॐ श्रीं रमायै नमः ।
ॐ श्रीं लक्ष्म्यै नमः ।
ॐ श्रीं लोकमात्रे नमः ।
ॐ श्रीं लोकशोकविनाशिन्यै नमः ।
ॐ श्रीं वरलक्ष्म्यै नमः ।
ॐ श्रीं वरारोहायै नमः ।
ॐ श्रीं वसुधायै नमः ।
ॐ श्रीं वसुधारिण्यै नमः ।
ॐ श्रीं वसुन्धरायै नमः ।
ॐ श्रीं वसुप्रदायै नमः ।
ॐ श्रीं वाचे नमः ।
ॐ श्रीं विकृत्यै नमः ।
ॐ श्रीं विद्यायै नमः ।
ॐ श्रीं विभावर्यै नमः ।
ॐ श्रीं विभूत्यै नमः ।
ॐ श्रीं विमलायै नमः ।
ॐ श्रीं विश्वजनन्यै नमः ।
ॐ श्रीं विष्णुपत्न्यै नमः ।
ॐ श्रीं विष्णुवक्षस्स्थलस्थितायै नमः ।
ॐ श्रीं शान्तायै नमः ।
ॐ श्रीं शिवकर्यै नमः ।
ॐ श्रीं शिवायै नमः ।
ॐ श्रीं शुक्लमाल्याम्बरायै नमः ।
ॐ श्रीं शुचये नमः ।
ॐ श्रीं शुभप्रदाये नमः ।
ॐ श्रीं शुभायै नमः ।
ॐ श्रीं श्रद्धायै नमः ।
ॐ श्रीं श्रियै नमः ।
ॐ श्रीं सत्यै नमः ।
ॐ श्रीं समुद्रतनयायै नमः ।
ॐ श्रीं सर्वभूतहितप्रदायै नमः ।
ॐ श्रीं सर्वोपद्रव वारिण्यै नमः ।
ॐ श्रीं सिद्धये नमः ।
ॐ श्रीं सुधायै नमः ।
ॐ श्रीं सुप्रसन्नायै नमः ।
ॐ श्रीं सुरभ्यै नमः ।
ॐ श्रीं स्त्रैणसौम्यायै नमः ।
ॐ श्रीं स्वधायै नमः ।
ॐ श्रीं स्वाहायै नमः ।
ॐ श्रीं हरिण्यै नमः ।
ॐ श्रीं हरिवल्लभायै नमः ।
ॐ श्रीं हिरण्मय्यै नमः ।
ॐ श्रीं हिरण्यप्राकारायै नमः ।
ॐ श्रीं हेममालिन्यै नमः ।
अन्त मे हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना कर लें ।
यह पूजन आप रात्री मे कर सकते हैं । अगर ऐसा संभव ना हो तो आप दिन में किसी भी समय इसे कर सकते हैं ।
अगर आपने श्री यंत्र के ऊपर पूजन किया है तो पूजा करने के बाद उस यंत्र को आप पूजा स्थान में या अपने पैसा रखने वाले गल्ले में रख सकते हैं ।